Thursday 7 May 2020

Call for Entries

Add caption
Call for Entries
All practicing printmakers worldwide are invited to participate in
“PRO-PRINTMAKER WORLD PREMIER
An international open call for prints
Organized by Kolkata Ink.
This international exhibition of fine art printmaking will be open for all national and international Artists
  • All practicing printmakers worldwide are invited to submit 2 original print’s digital image. (no larger than 3MB) .
  • All printmaking techniques are accepted. Except digital art. 
  • Artist name-
  • Work title-
  • Medium –
  • Size in inch-
  • Prices –
  • Number of editions available for sale
  • CV.
  • Self portrait.
  • Application Deadline:  12 May 2020
  • Exhibition Dates: 18 May to 10 June 2020.
  • Artist have to do send your artwork & details to
  • infokolkataink@gmail.com

Wednesday 29 April 2020

COVID-19 LOCKDOWN | NIPPON GALLERY |




COVID-19 LOCKDOWN | NIPPON GALLERY |
Explore artwork by various artists from different states all over the India coming together to showcase their work done during lockdown.

STUDIO ARREST l
21 days COVID-19 LOCKDOWN INDIA 2020

In deadly time, life in these quarantine time work of art.
Join us for this art exhibition online
Date: 1st May 2020 to 28th May 2020.

Live

Need help?
Sale inquires : Skype / ZOOM
Share : Facebook / Instagram
Note: Artwork will be couriered in roll format with no shipping charges.

Thursday 26 March 2020

Protecting oneself, one protects others’ Protecting others, one protecting oneself’- Lord Buddha

आज का डरा हुआ विश्व और सहमा सा रंगमंच !
डर..! डर हम इंसानो कि सबसे मजबूत और पुरानी सटीक भावना है l सबसे प्राचीन और सबसे मजबूत डर अनदेखे भविष्य का डर है ! अमरिका के मशहूर लेखक हॉवर्ड फिलिप्स लवक्राफ्ट ने इस बात को साझा किया जब वे खुद कि निजी जिंदगी में इसका अनुभव कर चुके थे l

इतिहास के अस्तित्व में आने से बहोत पहले मनुष्यो का अस्तित्व था l प्रागैतिहासिक मनुष्यो के बारे में जानने लायक सबसे महत्वपूर्ण बात ये है के वे मामुली प्राणी थे, जिनका अपने पर्यावरण पर गुरील्लाओं, जुगनूओं या मछली से ज्यादा प्रभाव नही था l आज का मनुष्य इन् सबसे कई गुना आगे सोचने लगा हैl



आज पुरी दुनिया लॉक डाऊन में जी रही है.. सब कूछ जैसे थम स गया हैl इन्सान की ये फितरत हि नही के वो कई दिनो तक एकही जगह बैठा रहेl मगर हमारी खुद कि गलती को हमे खुद को हि मिटाना होगा, संयम और सतर्कता से l आज के जमाने में सोशल नेट्वर्किंग कि वजह से कम से कम एक दुसरे से संपर्क तो कर सकते है, जानकारी पहुंचा सकते हैl युवाल नोआ हरारी कि माने तो हम अपनी जबरदस्त बुद्धिमत्ता को लेकर बोहोत आसक्त है, हम मानते है कि जहां तक दिमागी शक्ती का सवाल है, वह जितनी ज्यादा हो उतनी हि अच्छी है, लेकीन ऐसा है नही; और अगर ऐसा होता तो बिल्लीयो कि प्रजाती ने कूछ ऐसी बिल्लीयो को उत्पन्न किया होता जो Calculus कर सकती l

हाल ही में पुरा विश्व फिर से एक बार ‘Black Death’ कि तरफ बढ रहा है l ‘ब्लैक डेथ’ अक्तूबर १३४७ में युरोप में काले समुंदर कि दुरी तय कर के व्यापारियो कि जहाजो से निकली प्लेग कि महामारी थी l करीब करीब एक दर्जन जहाज किनारे तो लगे मगर उनमे से कोई बाहर न निकला l किनारो पर खडे लोगो के कूछ समझ में नही आ रहा था l कूछ देर बाद जब किनारो पर इंतजार कर रहे लोग जहाज पर चढे तो उनके होश उड गये l जहाजो में मिली लाशे और लाशो में कूछ जिंदा लोग जो किसी तऱह जिने कि उम्मीद लगा बैठे थे l वे सभी मौते प्लेग के कारण हुई थी l जहाज पर संवार हो कर आइ ये महामारी धीरे-धीरे युरोप के कई हिस्सो में फैल गई और तकरीबन आधी आबादी को खतम कर दिया l ये बिमारी वही से फैलकर समुचे विश्व में पहुंची l इस घटना के कई सालों बाद भारत कि प्रथम महिला अध्यापिका सावित्रीबाई फुले इनका निर्वाण भी प्लेग जैसी बिमारी के कारण हि हुआ था l इस महामारी से समुचे युरोप कि हालत काफी खस्ता हो गई l प्राकृतिक आपदासे बिमारियो का जैसा असर दुसरे देशो में था, युरोप में भी वैसा हि था l लोगो को खाने-पिने जैसी संसाधनो कि किल्लत उठानी पडी l जिनके पास अनाज था वें ३०० प्रतिषद तक दाम बढाचढा कर बेचने लगे l जिनके पास साधन नही था वे भूखो मरने मजबूर थे l लाखो लोगो कि भूख के चलते तडप-तडप के मौत हो गई थी l

 Image source
https://economictimes.indiatimes.com/


आज कि तरह तब भी ये महामारी चीन से हि आयी थी सन १३४० के बाद जब चीन में ये कहर बरपा तब ये चीन कि सरहद तक सिमट कर नही रहा और व्यापार में सहुलीयत के लिहाज से मध्य-एशिया, एशिया और दक्षिण युरोप के बीच संपर्क स्थापित करने के लिये सदियो पूर्व, थल और जल मार्ग विकसित किया गया था, जिसे ‘Silk Road’ कहा जाता था l ‘सिल्क रोड’ इसलिये क्यो के उसी मार्ग से सिल्क का व्यापार हुआ करता था, और इसी मार्ग के जरीये प्लेग जैसी महामारी भारत पहुंची थी l आज ये हवाई मार्ग से भारत और अन्य जगह फैल गया है l जब के उस वक़्त इतने प्रगत राष्ट्र नही थे l आज पुरी दुनिया में विज्ञान काफी आगे जा चुका है मगर कोरोना जैसे विषाणू से पुरे विश्व के वैज्ञानिक परेशान है, खोज रहे है जब के दुनियाभर के प्रगत राष्ट्र में इस विषाणू से मरने वाले लोगों कि तादात बढती जा रही है l

भारत कि जनता में आज कई ऐसे लोग है जिनके पास संसाधनो कि कमी है l रोज वे घर से बाहर निकलते है, तभी अपने परिवार के लिये रोटी का इंतजाम कर सकते है l मगर जब पुरा विश्व लॉक डाऊन है तब कई सारे परिवार इसकी चपेट में आना जायझ है, और हमे इन सबके बारे में सोचना बोहोत जरुरी है l ‘ब्लैक डेथ’ को दुनिया के इतिहास में सबसे खतरनाक महामारी के नाम से जाना जाता हैl हमे यानी समुचे विश्व को ये दोहराना नही है, अगर हम राज्य और केंद्र सरकार द्वारा बताये नियमो का पालन करेंगे तो हम अपने प्रीयजनो को दोबारा अपनी बाहोमें समेट सकते है l

 Image source

The Hindu

हमारी पिढी, जो ये सब हालात अपनी आखों दे देख-महसूस कर रही है, आने वाले समय में गवाह रहेंगे, कैसे इन्सान जैविक हथियार का शिकार हो रहा है.. कोरोना संक्रमण से बचने हेतू हम आज घर बैठे अपने प्रियजनो कि खुशहाली पुछ रहे है l जब हम उनके पास थे उससे कई गुना ज्यादा आज हमे उनके होने का अहसास सता रहा है l हमें एक दुसरे के प्रेम कि बोहोत जरुरत हैl

आज ‘विश्व रंगमंच दिवस’ पर विश्व का यह रंगमंच इन हालातो के चलते खाली रहने दे.. ताकी हम फिर एक नई शुरुवात कर स्वस्थ किरदार रंगमंच पर उतार सके ! सन १९६१ से ‘अंतरराष्ट्रीय रंगमंच संस्थान’ द्वारा शुरू हुआ यह दिन शायद विश्व में पहली बार ‘सामाजिक दुरी’ बनाये मनाया जा रहा है l

अपना और अपने प्रियजनो का ख्याल रखीये.. अकेले रहे.. खुद का और राष्ट्र का ख्याल रखें..!
आज बनाई गई दुरीया कल के मिलन का भविष्य है !
सिर्फ मन कि दूरिया मत बढाइये.. ये तकलीफदेह है.. बोहोत !!


अत्तानं रखन्तो परमं रक्खती l
परमं रखन्तो अत्तानं रक्खती l – महात्मा बुद्ध

(Protecting oneself, one protects others’
Protecting others, one protecting oneself’- Lord Buddha)


( No image copyright, Thanks The Hindu/ ET)




Dhananjay Sable




*वर्तमान परिस्थितीमुळे व्हायरल होत असलेला चित्रकार*


एडवर्ड हॉपर.
सहा दिवसांपूर्वी न्यूयॉर्क टाइम्समध्ये एका जून्या अमेरिकन चित्रकारावरती एक लेख लिहिला गेला कारण जगभरातून सोशल मीडियावरती हा चित्रकार सध्या व्हायरल होतोय. 



आज जगभरातल्या सर्व महत्त्वाच्या देशांनी स्वतःला बंद करून घेतलंय. भविष्याकडे जीव काढून पळणाऱ्या माणसांना एकाएकी ब्रेक लावल्यासारखं थांबवून टाकलंय.  माणसं घरात बसून आहेत , एकमेकांशी बोलत आहेत. पण असं ते किती दिवस वागतील.  चार दिवस एकमेकांशी बोलतील , आठवडाभर बोलतील पण त्यानंतर सर्व विषय संपल्यावर एक अशी वेळ येईल की हा संवाद थांबेल.  त्यांना परत एकदा एकटं असावसं वाटेल. कोणाशीही कशाहीबद्दल काहीही बोलावं वाटणार नाही कारण आपल्या शहरी माणसांना एकमेकांशी बोलणं इतकं सवयीचं उरलं नाहीये. आपल्या रोजच्या जगण्यात घरातल्याच लोकांशी आपण किती काळ संवाद साधतो याबद्दलच शंका आहे. हा एकटेपणा आपल्या शहरी जगण्याचा स्थायीभाव होत चाललाय. 
जगभरातल्या या विलगीकरणाच्या लाटेमध्ये मागच्या काही दिवसांपासून एक अमेरिकन चित्रकार व्हायरल होतोय. लोकांना त्याची परत एकदा आठवण झाली आहे.  1882 ते 1967 या त्याच्या कार्यकाळातच त्याने आपल्या वर्तमान जगण्याची दिनचर्या मांडून ठेवली होती ‌.  या चित्रकाराचं नाव आहे एडवर्ड हॉपर. 



             हा एडवर्ड हॉपर शहराची चित्रं काढायचा. शहरं , शहरातली माणसं , इथल्या इमारती , रस्ते , पेट्रोल पंप्स , छोटी-मोठी हॉटेल्स.  असे साधेसुधे वाटणारे , रोजच्या जगण्यातले , आपल्या आजूबाजूला दिसणारे चित्रविषय. हॉपरच्या कुठल्याही चित्रातला , कुठलाही माणूस , कुठल्याही ठोस एक्सप्रेशनशिवाय चित्रित केलेला असतो. तो संमिश्र भावना असलेला चेहरा आणि जोडीने त्याने मांडलेला अवकाश आपल्या आतलं असं काहीतरी हलवून जातात की मनात येणाऱ्या सर्व भावना काही काळासाठी गोठून जातात. वैयक्तिकदृष्ट्या एडवर्ड हॉपरची चित्र मला गायतोंडेंच्या चित्रानुभवाशी नातं सांगणारी वाटतात. एकाग्रतेने पाहत असल्यास गायतोंडेंची चित्र ही तुम्हाला तुमच्या आदिम शांततेशी नेऊन पोहोचवतात ,  त्याचपद्धतीने हॉपरदेखील त्या आदिम एकटेपणाच्या भावनेशी नातं जोडतो.

इंग्रजीमध्ये ecstasy असा एक शब्द आहे. या शब्दामागे अभिप्रेत असणारा ‘ आनंद ‘ आपण कुठल्याही थुकरट , रोजच्या जगण्यातल्या साध्यासुध्या अनुभवाशी जोडू शकत नाही. ह्या शब्दातून अभिप्रेत असणारा ‘ आनंद ' हा दैवी आहे. तो मांडण्याजोगा नाही. हॉपरच्या चित्रांमधूनही अशीच एक भावना तयार होते. ती शब्दात मांडल्या जाऊ शकत नाही. त्याच्या चित्रातून दिसणारा एकटेपणा हा समाजात रोज वावरताना आपल्याला एकमेकांप्रती असणारा तुसडेपणा नाही किंवा आपल्याला सभोवतालातून वेगळा करणारा एकटेपणा नाही. त्याच्या चित्रातला हा एकांत तुमच्या आतला आहे , आदिम आहे , मूळ आहे. हा एकांत तुमच्या जन्मापासून तुम्ही तुमच्या आत वाढवलेला आहे. रोजच्या जगण्यात हा एकांत जाणवत नाही ,  तो अवचित बाहेर येतो आणि आपल्या एकटं असण्याची आपल्याला करकरीत जाणीव करून देतो. 

आपल्या आयुष्यात असे तुरळक क्षण येतात जिथे आपल्याला खरोखरी मनापासून वाटतं की आपण पूर्ण एकटे आहोत. एडवर्ड हॉपर मला त्या अवचित उगवणाऱ्या क्षणांना मूर्त रूप देणारा चित्रकार वाटतो. 















- Charudatt Pande

   Artist/ Writer

  Pune - 2020



image google no copyright