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Sunday, 31 July 2016
Saturday, 30 July 2016
Tuesday, 26 July 2016
रज़ा का फ्राँस में रहना भी हिंदुस्तान में रहना ही था। वे जिद्दी थे तो वहाँ रहते हुए कभी फ्रांसीसी नागरिकता नहीं स्वीकार की ..
रज़ा आखिरी सदस्य थे प्रोग्रेसिव आर्टिस्ट ग्रुप के। उनके जाने के साथ एक जिद की उपस्तिथि ख़त्म हुई भले ही अब वो किसी दूसरे रूप में दिखे किन्तु उस शान्त, चमकती रंग उपस्तिथि का सिर्फ अहसास बचा है। रज़ा लम्बे समय तक अस्पताल में अपने होने को शायद कभी नहीं पसंद करते उन्हें पसन्द था स्टूडियो में होना, अपने रंगों के साथ होना और खुद को उस रंग में डुबाते रहना। रज़ा का फ्राँस में रहना भी हिंदुस्तान में रहना ही था। वे जिद्दी थे तो वहाँ रहते हुए कभी फ्रांसीसी नागरिकता नहीं स्वीकार की और जब पूरा परिवार पकिस्तान जा रहा था तब भी उन्होंने हिंदुस्तान में रहना ही चुना।
उनके चारो भाई, दोनों बहने और पहली पत्नी पकिस्तान चले गए किन्तु वे यहीं रहे। गाँधी के प्रभाव में, गाँधी के सपनो को जानते, समझते और अपनी तरह से उनमें रंग भरते। रज़ा सिर्फ रज़ा ही हो सकते हैं अकेले रज़ा जो अपनी रज़ा से जीवन भर चित्र बनाते रहे और नियमित रोज सुबह अपने स्टूडियो में जाना सिर्फ काम करना। मुझे नहीं लगता फ्रांस में रज़ा को पता था कि अण्डे कहाँ मिलते हैं ? वे स्टूडियो के बाहर की दुनिया से लगभग अपरिचित ही रहे। अपने काम में डूबे रज़ा को पसंद था कविता साथ, अच्छी पुस्तकों और चित्र कला की दुनिया के अलावा वे अपनी पसन्द की रेस्तरॉं इन्द्र में अपने दोस्तों को ले जाना नहीं भूलते थे जहाँ उनकी पसन्द का हिंदुस्तानी खाना मिलता था। उस समय के चित्रकारों का कविता, शायरी से सम्बन्ध चित्रकला के एक अंग की तरह ही रहा। रज़ा को याद थे कई शेर जिन्हें वो वक़्त की नज़ाकत को और गहराई से बयां करने के लिए सुनाया करते थे। रज़ा का न होना सालता रहेगा हम सभी को और उनका जाना ख़ाली कर गया एक विलक्षण, विनम्र, विवेचना कर सकने वाले चित्रकार की जगह जो कभी नहीं भरी जा सकेगी।
SH Raza |
उनके चारो भाई, दोनों बहने और पहली पत्नी पकिस्तान चले गए किन्तु वे यहीं रहे। गाँधी के प्रभाव में, गाँधी के सपनो को जानते, समझते और अपनी तरह से उनमें रंग भरते। रज़ा सिर्फ रज़ा ही हो सकते हैं अकेले रज़ा जो अपनी रज़ा से जीवन भर चित्र बनाते रहे और नियमित रोज सुबह अपने स्टूडियो में जाना सिर्फ काम करना। मुझे नहीं लगता फ्रांस में रज़ा को पता था कि अण्डे कहाँ मिलते हैं ? वे स्टूडियो के बाहर की दुनिया से लगभग अपरिचित ही रहे। अपने काम में डूबे रज़ा को पसंद था कविता साथ, अच्छी पुस्तकों और चित्र कला की दुनिया के अलावा वे अपनी पसन्द की रेस्तरॉं इन्द्र में अपने दोस्तों को ले जाना नहीं भूलते थे जहाँ उनकी पसन्द का हिंदुस्तानी खाना मिलता था। उस समय के चित्रकारों का कविता, शायरी से सम्बन्ध चित्रकला के एक अंग की तरह ही रहा। रज़ा को याद थे कई शेर जिन्हें वो वक़्त की नज़ाकत को और गहराई से बयां करने के लिए सुनाया करते थे। रज़ा का न होना सालता रहेगा हम सभी को और उनका जाना ख़ाली कर गया एक विलक्षण, विनम्र, विवेचना कर सकने वाले चित्रकार की जगह जो कभी नहीं भरी जा सकेगी।
- अखिलेश -2016 (Text and image source from Akhil Esh) |
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