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Saturday, 30 July 2016
Tuesday, 26 July 2016
रज़ा का फ्राँस में रहना भी हिंदुस्तान में रहना ही था। वे जिद्दी थे तो वहाँ रहते हुए कभी फ्रांसीसी नागरिकता नहीं स्वीकार की ..
रज़ा आखिरी सदस्य थे प्रोग्रेसिव आर्टिस्ट ग्रुप के। उनके जाने के साथ एक जिद की उपस्तिथि ख़त्म हुई भले ही अब वो किसी दूसरे रूप में दिखे किन्तु उस शान्त, चमकती रंग उपस्तिथि का सिर्फ अहसास बचा है। रज़ा लम्बे समय तक अस्पताल में अपने होने को शायद कभी नहीं पसंद करते उन्हें पसन्द था स्टूडियो में होना, अपने रंगों के साथ होना और खुद को उस रंग में डुबाते रहना। रज़ा का फ्राँस में रहना भी हिंदुस्तान में रहना ही था। वे जिद्दी थे तो वहाँ रहते हुए कभी फ्रांसीसी नागरिकता नहीं स्वीकार की और जब पूरा परिवार पकिस्तान जा रहा था तब भी उन्होंने हिंदुस्तान में रहना ही चुना।
उनके चारो भाई, दोनों बहने और पहली पत्नी पकिस्तान चले गए किन्तु वे यहीं रहे। गाँधी के प्रभाव में, गाँधी के सपनो को जानते, समझते और अपनी तरह से उनमें रंग भरते। रज़ा सिर्फ रज़ा ही हो सकते हैं अकेले रज़ा जो अपनी रज़ा से जीवन भर चित्र बनाते रहे और नियमित रोज सुबह अपने स्टूडियो में जाना सिर्फ काम करना। मुझे नहीं लगता फ्रांस में रज़ा को पता था कि अण्डे कहाँ मिलते हैं ? वे स्टूडियो के बाहर की दुनिया से लगभग अपरिचित ही रहे। अपने काम में डूबे रज़ा को पसंद था कविता साथ, अच्छी पुस्तकों और चित्र कला की दुनिया के अलावा वे अपनी पसन्द की रेस्तरॉं इन्द्र में अपने दोस्तों को ले जाना नहीं भूलते थे जहाँ उनकी पसन्द का हिंदुस्तानी खाना मिलता था। उस समय के चित्रकारों का कविता, शायरी से सम्बन्ध चित्रकला के एक अंग की तरह ही रहा। रज़ा को याद थे कई शेर जिन्हें वो वक़्त की नज़ाकत को और गहराई से बयां करने के लिए सुनाया करते थे। रज़ा का न होना सालता रहेगा हम सभी को और उनका जाना ख़ाली कर गया एक विलक्षण, विनम्र, विवेचना कर सकने वाले चित्रकार की जगह जो कभी नहीं भरी जा सकेगी।
SH Raza |
उनके चारो भाई, दोनों बहने और पहली पत्नी पकिस्तान चले गए किन्तु वे यहीं रहे। गाँधी के प्रभाव में, गाँधी के सपनो को जानते, समझते और अपनी तरह से उनमें रंग भरते। रज़ा सिर्फ रज़ा ही हो सकते हैं अकेले रज़ा जो अपनी रज़ा से जीवन भर चित्र बनाते रहे और नियमित रोज सुबह अपने स्टूडियो में जाना सिर्फ काम करना। मुझे नहीं लगता फ्रांस में रज़ा को पता था कि अण्डे कहाँ मिलते हैं ? वे स्टूडियो के बाहर की दुनिया से लगभग अपरिचित ही रहे। अपने काम में डूबे रज़ा को पसंद था कविता साथ, अच्छी पुस्तकों और चित्र कला की दुनिया के अलावा वे अपनी पसन्द की रेस्तरॉं इन्द्र में अपने दोस्तों को ले जाना नहीं भूलते थे जहाँ उनकी पसन्द का हिंदुस्तानी खाना मिलता था। उस समय के चित्रकारों का कविता, शायरी से सम्बन्ध चित्रकला के एक अंग की तरह ही रहा। रज़ा को याद थे कई शेर जिन्हें वो वक़्त की नज़ाकत को और गहराई से बयां करने के लिए सुनाया करते थे। रज़ा का न होना सालता रहेगा हम सभी को और उनका जाना ख़ाली कर गया एक विलक्षण, विनम्र, विवेचना कर सकने वाले चित्रकार की जगह जो कभी नहीं भरी जा सकेगी।
- अखिलेश -2016 (Text and image source from Akhil Esh) |
Monday, 25 July 2016
HELP : The memorial plaque narrating the story of Hedma Ram, killed in an alleged fake encounter.
About
the Plaque
This plaque in Sulenga
village in Bijapur district, Bastar is named after villager Hedma Ram, who was
killed on February 4, 2016.
His name is painted at the
top of the plaque, divided into three panels. The upper panel shows man,
presumably Ram, resting while cattle grazes. He is then surrounded by armed men
in the second panel. They are policemen with guns in the plaque.
In the third panel, at the
bottom of the plaque, Ram is again lying on ground. Hedma Ram, following his death
was “dragged by police.” Other animals, including a crocodile, are witnessing
the encounter in the plaque.
The villagers of heavily
militarised areas of south Chattisgarh have embraced traditional Gond art to
narrate their tragedies. The last moments of Gond tribals before they are killed
by the security forces, are narrated on Mritak
Sthamv [memorial plaque] made
of stone. The villagers have captured those moments when security forces have
allegedly killed the tribals.
Gond tribals often put up a stone or two to
mark the passing away of a member in the village. The plaques, not headstones,
are not placed in the burial grounds like in organised religion but mostly in
an open space near the village and coloured with pigments extracted from trees.
And it’s on these that encounter killings are being documented.
Kamal Shukla is a veteran writer-journalist
and activist of south Chattisgarh, who has been documenting such plaques.
An Appeal
Kamal
is suffering from cancer and the adivasis of Bastar have joined in an effort to
raise funds for him for his treatment for which he has to come to Mumbai
regularly. The adivasis are collecting
whatever they can individually in their areas. This is an appeal to all
artists, photographers, painters and the readers of this site to help
contribute towards his medical expenses. Thank you.
His contact no: 9981635944
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