Friday, 20 June 2014

मेरा मानना है कि हमारे जीव होने को प्रामाणिकता प्रदान करने वाले एहसास आरम्भिक बिंदु से ही अवतरित होते हैं -अर्चना मिश्रा

मनुष्य जब जन्म लेता है तो उसका स्वरुप  निर्मल और स्वच्छ होता है परन्तु सभ्यता , शिक्षा, संस्कृति  और संस्कार के आवरण से हम उसे  ढकते चले जाते हैं या यूँ कहें कि अपने निर्मल मन का दमन कर बुद्धि का विकास करते  हैं। बुद्धि हमारे शरीर का एक ऐसा यंत्र है जो कि इन्द्रियों  द्वारा दी गई जानकारी से संचालित है।  यह सत्य है कि मात्र मनुष्य ही ऐसा प्राणी है जिसने अपनी बुद्धि का सर्वाधिक विकास किया तथा प्रकृति में अपनी नयी सत्ता कायम की परन्तु दुर्भाग्यवश अपनी ही वास्तविकता से दूर होता चला गया। 
( Archana Mishra Art Talk series at Art Gate Gallery 2014 )


मेरा मानना है कि  हमारे जीव होने को  प्रामाणिकता प्रदान   करने वाले एहसास आरम्भिक बिंदु से ही अवतरित होते हैं   कहने का तात्पर्य है कि आत्मा के साथ - साथ एहसास भी हमें  अपने शुद्ध रूप में प्राप्त होते हैं। जन्म से पहले और जन्म के बाद बच्चा जैसा महसूस करता है वैसे ही भावों को प्रकट करता है परन्तु जैसे - जैसे उसकी इन्द्रियाँ और बुद्धि परिपक्व होती हैं भावों का स्वाभाविक प्राकट्य नगण्य हो जाता है।  यह विडम्बना है कि अनजाने में ही हम अपने एहसास की तिलांजलि दे भावों का रूपांतरण कर देते हैं। भाव जो हमारे आंतरिक एहसास को प्रकट करते थे वो कब इन्द्रियों के वशीभूत हो गए हमें पता भी नहीं चलता।  अब वो बुद्धि और इन्द्रियों के अनुरूप प्रकट होते हैं। यही कारण है की इनकी स्थिरता स्थाई नहीं होती।  बाहरी आवरण से प्रकट हुए भाव आंतरिक एहसासों से अछूते होते हैं  उनका  अस्तित्व आधारहीन होता है और वो  जल्दी समाप्त हो जाता है। समाज में लिप्त और खुद से दूर जिंदगी आंतरिक और बाह्य जगत से उभरे भावों में अंतर कर पाने में अधिकांशतः असमर्थ और भ्रमित  रही है। यही भ्रम बुद्धि और मन पर आच्छादित हो सत्य को धूमिल कर रचनात्मक भावों की सत्ता को जन्म देता हैं और मनुष्य आजीवन अपनी आंतरिक सृष्टि को भूल बाह्य जगत को तुष्ट करने में सर्वस्व अर्पण करके भी अतृप्त रहता है। 

               
किशोरावस्था  से ही मेरे अंदर ये द्वंद चलता रहा कि भाव इतने आतुर क्यों होते हैं  ? न ही ये तृप्त होते हैं न ही शांत, बस उभरते हैं अपने अस्तित्व का प्रदर्शन कर लुप्त हो जाते हैं। यह पानी में उठने वाले बुलबुले जैसा है जो सतह पर अपने अनिश्चित अस्तित्व के प्रदर्शन से  हमें आकर्षित कर कुछ इस तरह विलीन हो जाते हैं जैसे कभी उभरे ही नहीं। यह आकर्षक है परन्तु सत्य नहीं , सत्य क्षणिक नहीं शाश्वत है। हमारा मन बहुत उपद्रवी  है।  अतृप्त और असंतोष मन में ठहराव नहीं है। ऐसे ही कई प्रश्नों को  खंगालने के बाद मुझे यह ज्ञात  हुआ कि एहसास प्रकृति के कण -कण में यथावत  व्याप्त हैं  परन्तु भावों का रूपांतरण होता चला गया। प्रारम्भ में मैंने अपने प्रश्नों के उत्तर प्रकृति में तलाशे क्योंकि मुझे ज्ञात था कि प्रकृति में निहित एहसासों के प्राकट्य   भाव भी शुद्ध हैं। उन्हें देख कर हम समझ सकते हैं की हमारे भाव कितने स्वाभाविक हैं और कितने अस्वाभाविक।  यही कारण है कि मेरे प्रारंभिक कलाकृतियों में  प्रकृति की भिन्न - भिन्न छटाओं को आसानी से देखा जा सकता है परन्तु समय के साथ प्रश्नों का गूढ़ होना स्वाभाविक है।  यह भी एक अद्भुत बात है कि प्रश्न जितने गूढ़ होते  हैं उनके उत्तर उतने ही सरल। हमारे अंदर से उपजे प्रश्नों के उत्तर भी हमारे अंदर ही है। स्वयं को जानना संसार को जानने से ज्यादा कठिन है।  

सालों पहले उपजे प्रश्नों के उत्तर आज मेरे सामने हैं परन्तु इन्हें यथावत स्वीकार करना संभव नहीं। इन्हें स्वीकारने का अर्थ है अपने अस्तित्व की तिलांजलि दे पुनः जन्म लेना। यही कारण है कि पिछले कुछ  सालों से मैं इन जवाबों के मूल को तलाश रही थी।  एहसासों और भावों के मूल को समझें तो , एहसास आत्मा है और भाव रूप  है अर्थात हम जो अनुभव करते हैं उसका  इन्द्रियों द्वारा प्राकट्य भाव है।मेरा मानना है भाव दो प्रकार के होते हैं बाह्य  भाव और आतंरिक भाव।
( Archana Mishra Art Talk series at Art Gate Gallery 2014 )

 बाह्य भाव जो  सभ्यता , शिक्षा, संस्कृति  और संस्कार की लक्ष्मण रेखा के अंदर बुद्धि और मन के रचे भ्रम का प्राकट्य है, यहाँ एहसास का कोई अस्तित्व नहीं।यह परिस्थितियों के दबाव से प्रकट होते हैं । बाह्य भाव
अशांत , सतही ,उत्तेजित और अल्प अवधि के लिए होते हैं। बाह्य भाव भ्रम है। 
आंतरिक भावों में केवल एहसास और मन ही कार्यरत होते हैं बाकि सब नगण्य है, बुद्धि का यहाँ कोई काम नहीं। यह मन की स्वच्छ्न्दता से प्रकट होते हैं। आंतरिक भाव शाँत, गहरे, हठी और दीर्घकालीन होते हैं। आंतरिक भाव सत्य है।  

हम अधिकतर  बाह्य भाव में  ही जीते हैं और धीरे - धीरे यही सत्य हो जाता है , आंतरिक भावों की गहराई में डूबने से डरते हैं और बाह्य भाव की सतह मजबूत करते चले जाते हैं। मेरी नई कृतियों में इन जवाबों के सार को आप स्पष्ट महसूस कर सकेंगे।  निराकार विषय होने के कारण मेरी कृतियाँ भी अमूर्त हैं, जैसा कि हम जानते हैं दुनिया में सबसे छोटे कणों को क़्वार्क्स कहते हैं और हर कण की अपनी मूल संरचना होती है ऐसे ही अनगिनत कणों के संयोजन से ठोस आकर बनता है। मेरा मानना है कि एहसासों की संरचना भी कुछ इसी तरह की है , हर एक  एहसास भिन्न -भिन्न अदृश्य अनगिनत सूक्ष्म  कणों की संरचना है यही कारण है कि मेरी कलाकृतियों में अलग -अलग रूपाकारों  का संयोजन  दिखता है तथा इसमें प्रदर्शित  रूपाकारों के संयोजन प्राकृतिक और वैज्ञानिक जगत से प्राप्त कणों से पूर्णतः प्रभावित हैं। कलाकृतियों में इस अदृश्य सूक्ष्म जगत की  कोमलता  और सत्यता को प्रदर्शित करना मुझे आनंदित करता है।  


Tuesday, 17 June 2014

18th June SAVE DATE: ART TALK : Archana Mishra at 4:30pm and Prakash Waghmare at 6pm Art Gate Gallery, Churchgate Mumbai

Green Palette Group show

18th June SAVE DATE: ART TALK : Archana Mishra at 4:30pm and Prakash Waghmare at 6pm Art gate gallery, churchgate Mumbai

Wednesday, 11 June 2014

PRESS RELEASE : by Green Palette Group show

Date: April 18 – 26, June 2014 Venue: Art Gate Gallery, Churchgate, Mumbai

18th June : ART TALK : Chief Guest Speech

Archana Mishra : 4:30pm 5:30pm 
Creative Expressions ( Hindi) 

Prakash Waghmare : 6pm: 7pm 
Art Walk ( Marathi)

Date: April 18 – 26, June 2014 Venue: Art Gate Gallery, Churchgate, Mumbai

Byline: The Art Gate Gallery hosts an exhibition of contemporary paintings by Maharashtra  based Artist
  • Nitin Vinchure
  • Madhav Joshi 
  • Vikas Malhara  
  • Vijai Jain
  • Ashok Hinge
  • Raju Baviskar
( Group of artist Green Palette )

About the exhibition:in this group show  ‘Green Palette’ is a revival of freshness of Romanticism. As its name suggests, it is about taking the world back into nature holding on the social reality as well. The artists involved in this exhibition have creations depicting man’s mystic relationship with nature. There is also a revolutionary energy flowing in Green Palette which deliberately transforms our perception of the world. Like, artist Ashok Hinge, who uses natural and man-made elements in nature to simplify the concept of completeness of world around us. Nature is a source of subject and image; it’s a refuge from the artificial constructs of civilization. Green Palette aims at retrieving clean and green environment world wide. Every artists participating in this exhibition contributes in one form or the other in increasing Environmental awareness and spreading greener. It would be a great delight to feel and experience the revival of Romanticism in art after a long time on the group show ‘Green Palette’ and also be a part of spreading the message-  Gear up to make Globe Green again.   

About the artist’s work and artist:

Nitin Vinchure displays classic interpretation of all creations in this Universe with his imagination. He logical explains his imagination cum interpretation saying that, before any creation, there was only the Mahashunya or Nix. But Shakti or Sheerenrgy existed ...

Vijai Jain creations are perfect examples of symbolic creations. For him Solar System, Earth, Soil, Water, Birds, trees and his alkies’- the human beings, all the gleans are symbols surrounding us. Life proceeds enjoying the process of decoding the meaning these gleans...  

Madhav Joshi desires to express the "inexpressible"--the infinite--through the available resources of colors and forms. He too is completely awed by nature. He applauds the Nature’s capacity as a unified whole. The realistic creations are devoid of scientific or rationalist associations.
Vikas Malhara. I feel his statement suggests that nothing is static and permanently dominant in Life. For him Life is a kaleidoscope of happiness and sorrow, of brightness and darkness, of the beautiful and the ugly, of the form and the formless, of the seen and the unseen. They interplay, dominate by turns, changing patterns and meanings along the way.

Raju Baviskar, social realism is subordinate to imaginative suggestion, and most importantly the ideals suggested by his creations based on honest, hard working villager, their struggle round the clock for survival all these have simplicity and innocence, drawn with deep thinking of the reflections that he has seen in their eyes and expressions on their faces. The bodies are worn out and yet have hopes of something good to happen.

Ashok Hinge manages at his best to unify symbolism and realism. His creations are inspired by the God-made and Man-made elements, which is an attempt by the artist to metaphorically simplify the universe. For him man-made creations like temples as shown in ‘Surya Mandir’ is as important as lush green surroundings, mystical landscapes.     

The artist lives and works in Mumbai. 

Exhibition details: April 18 – 26 (11.00 am to 7.00 pm) and April 21 from 11.00 am – 3.00 pm Art Gate Gallery 1st Floor (above Satyam Collection) Chheda Sadan 115, J Tata Road Churchgate Mumbai, India

- by Pankaja JK
 

(Note : This PRESS RELEASE for all Indian news paper and Media, leading PR Agency  and online social media, please share )

Art Talk at Art Gate Gallery


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18th June SAVE DATE: ART TALK : Archana Mishra at 4:30pm and Prakash Waghmare at 6pm Art gate gallery, churchgate Mumbai
Art Gate Gallery can be contacted at:022 4213 8855
or emailed at artgate.sc@gmail.com

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